उंगलियों के पोरों से ऊन को लपेटते हुए सलाइयों को घुमाकर मखमली स्वेटर बुनने की कला और टर टर फर्श पर घूमता टिकरू अब कहानियों में रह जाएगा . सर्दी के मौसम में वो आंगन की धूप में बड़े पत्थरों में बैठी महिलाओं द्वारा मफलर शॉल जुराबे बुनती वो ऊन के गोले को लपेटती गांवों की लडकियां और ( का” रे मुखे बनानी ने बॉनियोन) बोलने वाली सबसे पुरानी आवाज नाना जी की भी याद ही रहे गई शिकायत करते गांव के मुख्या की कहानियां पुराने सरकारी फाइलों में दबकर जैसे किसी काठ की अलमारी में बंद हो गई हैं . अगले महीने नए मेहमान के इंतज़ार में खरगोश जैसे कान वाली टोपी बुनती चुलबुली लड़कियों भी अब सलाइयों का संतुलन भूल चुकी होंगी.
हाथ से बुने ऊनी स्वेटर. टोपियाँ. मोजे. दस्ताने. अहा! घरों की मजबूत पकड़, उंगलियों के पोरों का आपसी तालमेल, दोनों सलाइयों के अद्भुत सामंजस्य, ऊन की गर्माहट और मां मौसी-बुआ-दीदी चाची के प्रेम से पगा हुआ मखमली स्वेटर. हर साल जब सर्दियों में ट्रंक खोला जाता तो नेप्थलीन की गंध में लिपटे हुए वो स्वेटर हमें अपनी आगोश में लेने को मचल जाते.
कितनी प्रेम कहानियों को आज भी जिंदा रखने वाले हाथों से बुने हुए स्वेटर, जिसने बड़ी मशक्कत के बाद ‘मेरे साथ में रो रहा आसमां, मेरा प्यार खोया है जाने कहाँ’ गाती आरती को रेलवे स्टेशन पर उसके दीपक से मिलाया था. वही दीपक, जिसकी स्वेटर के दिल पर बना था दीया. इसी दीए वाले स्वेटर से दीपक को पहचान पायी थी आरती. शायद मेघा ने खुद से बुनकर दिए होंगे वो स्वेटर, मेघा के जाने के बाद भी राज आर्यन मल्होत्रा जिसे कंधों से लटकाए “जिंदा रहती हैं उनकी मोहब्बतें” की वायलिन बजाता रहा.
मोहब्बत के ये मखमली अहसास अब उंगलियों से बुने नहीं जाएंगे. अब वो समय कहाँ! हमारे खुद के घर बिखर रहे, स्वेटर के घरों में कहां मजबूत पकड़! इंसानों में सामंजस्य नहीं तो सलाइयों में सामंजस्य की उम्मीद क्यों करें! नहीं बुने जा सकते अब मजबूत मखमली रिश्ते. रिश्ते और स्वेटर अब एक क्लिक से आ जा रहे. अपनी जादुई खुश्बू के साथ अगले साल मिलेंगे कि नहीं, पता नहीं. अगले साल फिर वही गर्माहट होगी कि नहीं, पता नहीं. अगले साल आप उनके लिए या वो आपके लिए फिट होंगे कि नहीं, पता नहीं. बाजार नए को तवज्जो देती है. पुराने को बस बेच दो. ओएलएक्स है, जहां सब बिकता है.
वो पुरानी सर्दी बहुत याद आएगी जो अब कहानी में दफन हो गई है ।